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Intellectually Challenged
बुद्धिबाधित क्षमता विकास प्रकोष्ठ (धीमही)

घर में नया शिशु अपने साथ आनंद लेकर आता है। पूरे परिवार का वो नवजात बालक आकर्षण का केंद्र बनता है। बालक के रुप में अपने सपने लेकर मॉ बाप संसार का मार्ग क्रमण करते है। इस प्रवास में यह बालक दिव्यांग है तो उस दिव्यांग बालक के शारिरीक,मानसिक,सामाजिक,आर्थिक इस भवितव्य के बारे में अनेक प्रश्न अभिभावकों के सामने खडे हो जाते है। ऐसे बुद्धीबाधित दिव्यांग बालक मुख्य प्रवाह से कब दूर गया ये पता भी नहीं चलता। इसमे, से ही बचपन खो जाता है। अकेलापन का एहसास बढ जाता है।


  1.  RPD Act 2016 के अनुसार:.... 

बौद्धिक निशक्तता एवं विकासात्मक विकार ( Intellectual and Developmental Disorders) के अंतर्गत प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात मानसिक मंदता, आटिज्म, बहुनिशक्तता एवं विनिर्दिष्ट विद्या निशक्तता है I

1.प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Cerebral Palsy): से कोई अविकासशील अवस्थाओं का समूह अभिप्रेत है जो अविकासशील तंत्रिका दशाओं से शरीर के चलन और पेशियों के समन्वयन को प्रभावित करती है, जो मस्तिष्क के एक या अधिक विनिर्दिष्ट चक्रों में क्षति के कारण उत्पन्न होता है I साधारणतः जन्म से पूर्व, जन्म के दौरान या जन्म के तुरंत पश्चात होती है I 

चिकित्सीय लक्षणों के अनुसार चार भागों में बांटा जाता है I स्पासटीसिटी, एथेटोसिस, एटेक्सिया, मिक्स्ड ; प्रभावित अंगों के आधार पर पांच भागों में वर्गीकृत किया जाता है I मोनोप्लेजिया, हेमीप्लेजिया, डायप्लेजिया, पैराप्लेजिया, क्वाड्रीप्लेजिया I 

शीघ्र पहचान और उपचार (फिजियोथेरपी, ऑक्यूपेशनलथेरपी, स्पीचथेरपी) के कारण बच्चों के जीवन में काफी सुधार होते है I कुछ बच्चों में शस्त्रचिकित्सा करना पड़ता है I कई बच्चों में मिर्गी के लिए इलाज करना आवश्यक है I C:\Users\Saksham\Desktop\3.jpg







2.बौद्धिक निशक्तता: सेऐसी स्थिति, जिसकी विशेषता दोनों बौद्धिक कार्य (तार्किक,शिक्षण,समस्या समाधान) और अनुकूलन व्यवहार में महत्वपूर्ण रूप से कमी होना है (डाउन्स सिंड्रोम इ.) I जिसकी बुद्धि लब्धि (I.Q.) 70 से कम होती है उसे बौद्धिक निशक्तता माना जाता है I बुद्धि लब्धि के अनुसार इसको सौम्य (I.Q. 50-70), सामान्य (35-49), गंभीर (20-34), अतिगंभीर (20 से कम) बौद्धिक निशक्तता इ. चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है I

3. आटिज्म व स्वलीनता (Autism Spectrum Disorder) : से एक ऐसी तांत्रिका विकास की स्थिति अभिप्रेत है जो आमतौर पर जीवन के पहले तीन वर्ष में उत्पन्न होती है, जो व्यक्ति की संपर्क करने की संबंधो को समझने की और दुसरो से संबंधित होने की क्षमता को प्रभावित करती है और आमतौर पर यह अप्रायिक या घिसे-पटे कर्मकांडों या व्यवहार से सहबद्ध होता है I शीघ्र पहचान और उपचार (व्यावहारिक, मनोवैज्ञानिक, शैक्षिक चिकित्सा एवं कुछ दवाइयाँ) के कारण काफी सुधार होता है I

4.बहुनिशक्तता (ऊपरयुक्त एक या एक से अधिक विनिर्दिष्ट निशक्तता): जिसके अंतर्गत बधिरता,अंधता जिससे कोई दशा जिसमे कोई व्यक्ति श्रव्य और दृश्य के सम्मिलित ह्रास के कारण गंभीर सम्प्रेषण, विकास और शिक्षण संबंधी गंभीर दशाए अभिप्रेत है I

5. विनिर्दिष्ट विद्या निशक्तता (Specific Learning Disabilities): से स्थितियों का एक ऐसा विजातीय समूह अभिप्रेत है जिसमे भाषा को बोलने या लिखने का प्रसंस्करण करने की कमी विद्यमान होती है जो बोलने, पढने, लिखने वर्तनिय या गणितीय गणनाओं को समझाने में कमी के रूप में सामने आती है I इसके अंतर्गत डिस्लेक्सिया (पठन की कमी), डिसग्राफिया (लेखन में कमी), डिस्कल्कुलिया (गणित संबंधी कमियां), डिस्प्रैक्सिया (सूक्ष्म गामक कार्य के नियोजन में कमी) और विकासात्मक अफेसिया है I इसको उचित पहचान तथा विशेष विधियों से प्रभावशाली शिक्षण प्रशिक्षण के द्वारा दूर किया जा सकता है I

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(आ) विशेष शिक्षा एवं थेरपी– दिव्यांग बालकों के लिए अच्छी विशेष शिक्षा प्राप्त होने की आवश्यकता है। विशेष स्कुल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, विशेष शिक्षकों का अध्यापन, फिजियोथेरपी, ऑक्यूपेशनलथेरपी, स्पीचथेरपी एवं अभिभावक की भागीदारीता महत्त्वपूर्ण है I  

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दिव्यांग व्यक्ति-उनका परिवार; दिव्यांग व्यक्ति-विशेष शिक्षक; दिव्यांग व्यक्ति- थेरपीस्ट; दिव्यांग व्यक्ति–समाज; इसमें सकारात्मक सम्प्रेषण की आवश्यकता है। इसके लिए अभिभावक, शिक्षक, थेरपीस्ट, चिकीत्सक बीच मे ठीक संवाद आवश्यक है। प्रत्येक दिव्यांग की आवश्यकताएँ अलग है, हर एक दिव्यांग की सोच अलग है, यह ध्यान में रखकर शिक्षक एवं थेरपीस्ट कर्तव्य और अपनत्व भाव से बुद्धीबाधित दिव्यांगों को पर्याप्त समय देना है । 

कई प्रमस्तिष्क पक्षाघात दिव्यांग बालक जिनका बुद्धि लब्धि 80 से अधिक है, मुख्य शैक्षिक प्रवाह में जा सकते है। ऐसे दिव्यांग बालकों के लिए 10 वी, 12 वी, आय टी आय, स्नातक ऐसी शिक्षा का ठीक व्यवस्था होनी चाहिए। 

आधुनिक संसाधनों का उपयोग - जिला, तहसील स्तर पर बुद्धिबाधित बच्चों के लिएकॉम्प्युटर, स्मार्ट फोन, टँब, डिजीटल बोर्ड, इंटरनेट आदी की अच्छी प्रशिक्षण व्यवस्था होनी चाहिए। 

कला व क्रीड़ा–दिव्यांगों का जीवन आनंददायी होने के लिए बचपन से ही कला, संगीत, नृत्य, अभिनय, स्विमिंग, खेलकुद, चित्रकला अच्छा प्रभावी माध्यम है। विविध त्योहार उदा. गणेशोत्सव, नवरात्र उत्सव,  संक्रांति, दीपावली इ. समय में लगने वाली वस्तु मुख्यतः मिट्टी के कलात्मक वस्तु निर्माण कर सकते है। विविध सामाजिक संस्था समाज में इसका प्रदर्शन कर सकते है। 

व्होकेशनल ट्रेनींग प्रोग्राम -  बुद्धीबाधित दिव्यांगों के लिए प्रि-वोकेशनल (14 से 16 साल और 16 से 18

तक) वोकेशनल ट्रेनींग (18 से 20 और 20 से 22) का विचार करना है। छोटे और कम कौशल वाला उपक्रम, कृषि आधारित विषय उदा. पशुपालन, गो-संवर्धन, नर्सरी, गार्डन, फुल फलों की खेती,स्वच्छता के लिए साधन सामुग्री तैयार करना ऐसे विषयों पर लक्ष केंद्रीत कर सकते है। 

(इ) रोजगार और स्वयं रोजगार – बुद्धिबाधितव्यक्तियों की शारिरीक, मानसिक मर्यादा ध्यान में रखकर उन्हे रोजगार की व्यवस्था निर्माण करना चाहिए। इनके कार्य मे प्रामाणिकता रहती है । और महत्वपूर्ण विषय  है, दिव्यांग व्यक्तियों के अभिभावक या उसके परिवार का संपूर्ण पुनर्वास के बारे में सोचना पडेगा। क्योंकि दिव्यांग व्यक्तियों की शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार के बारे में सोचते– सोचते मॉ बाप की जिंदगी गुजर जाती है। 

(ई) अभिभावक की भूमिका एवं अभिभावक संघ-  बुद्धिबाधितदिव्यांग व्यक्ति अपने दिल की बात, रुची ठीक तरह से प्रकट नहीं कर सकते है। अभिभावकों ने उसकी रुची जानकर,घर में, निजी व्यवसाय में  विविध उपक्रम योजना किया तो वो आनंदी रहेगा और अभिभावकों को भी आनंद मिलेगा। विशेष शिक्षक और थेरपीस्ट भी अभिभावक को यह मार्गदर्शन किया जाना है। 

अभिभावकों के लिए परिवार नाम से एक नँशनल कॉनफेडरेशन ऑफ पँरेंट्स असोसिएशन है। पूरे देश में इनका कार्य अच्छा चलता है। लेकिन इसमे सभी सदस्य अभिभावक ही है, परंतु संगठन में सकलांग और विकलांग मिलके कार्य करना आवश्यक है I 

दिव्यांग व्यक्तियों का सामुहिक/ गटश: आवास व्यवस्था (Group Home)-  18 साल के ऊपर जो दिव्यांग व्यक्ती है, उनके सामूहिक निवास व्यवस्था होनी चाहिए। बहनो और भाइयों की स्वतंत्र निवास व्यवस्था होनी चाहिए I प्रि व्होकेशनल, व्होकेशनल ट्रेनींग की व्यवस्था होनी चाहिए I कृषी विषय पर ध्यान देना चाहिए I सेल्फ अँडव्होकेसी के बारे में प्रशिक्षण देना महत्वपूर्ण है I

(उ) बुद्धिबाधित क्षमता विकास प्रकोष्ट द्वारा जिला स्तर पर करणीय कार्य:

1. अष्टावक्र जयंती– 22 सप्टेंबर, विश्व डाऊन सिंड्रोम दिवस–21 मार्च, विश्व ऑटीझम दिवस– 2 अप्रैल, राष्ट्रीय सेरेब्रल पाल्सी दिवस– 3 अक्तुबर इ. कार्यक्रम हर जिला इकाई आयोजित करें I उसमे बुद्धिबाधित दिव्यांग, उनके परिवार के साथ सामान्य नागरिक और प्रतिष्ठित लोगों को आमंत्रित कर बुद्धिबधितों के समस्याये, आवश्यकताये, प्रतिभाये इ.से अवगत कराया जा सकता है I

2. विशेष शिक्षक थेरपीस्ट (PT,OT,ST & Psychologist), न्युरो फिजीशियन, बालरोग चिकित्सक, ऑर्थोपेडिक सर्जन इनके साथ संपर्क कर सूची बना के विविध कार्यक्रमों में आमंत्रित करना I

3. जिला अर्ली इंटरव्हेशन सेंटर (DEIC), DDRC के साथ सजीव संपर्क रखे I

4. इस क्षेत्र में कार्य करने वाले अन्य संस्थाओं का एकत्रिकरण, संगोष्ठी कर सकते है I

 जबलपुर, सिकंदराबाद और लातुर में सक्षम बुद्धिबाधित प्रकोष्ठ ‘धीमही’ नाम से राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित किया गया है I


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5.वैद्यकीय जाँच शिबिर, खेल-कुद चित्रकला, ड्रामा, संगीत इस विषय पर कार्यक्रम का आयोजन कर सकते है I

6. अभिभावकों से संपर्क कर मासिक मिलन की योजना करते हुए, सक्षम अभिभावक संघ बन सकते है I उनकी समस्या समझे और हल करने का प्रयास करे I अभिभावक संघ के माध्यम से, 18 साल की ऊपर व्यक्तिओं के लिए आवासीय प्रकल्प की योजना कर सकते है I

7. जिला कार्यकारिणी में अभिभावकों को जोड़ने का प्रयास किया तो इस क्षेत्र में कडी मेहनत करके सक्षम का काम खड़ा कर सकते हैं।

8. ‘राष्ट्रीय न्यास’ के परियोजनाए उदा. निरामया योजना, लीगल गार्डियन योजना इ. विषय अध्ययन करके दिव्यांग बंधू तक पहुँचाने का प्रयास करे।

जेष्ठ कवि कुसुमाग्रज जी ने कहा है कि,

सभी कलियों को हक है, जन्म से ही खिलने का।

जन्मस्थान हो बंजर धरती, या हो कोई सुंदर उपवन,

प्रत्येक कली को हक है, फूल बनकर जीने का।

कोई भी दिव्यांग हो, कैसा भी दिव्यांग हो उसका अधिकार है फूल बनकर जीने का।


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